Places To Visit Near Jwala Devi Temple Himanchal Pradesh ज्वाला देवी मंदिर के पास घूमने लायक जगहें. ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित एक प्रमुख शक्तिपीठ है, जहाँ देवी की पूजा प्राकृतिक रूप से जलती हुई ज्वालाओं के रूप में की जाती है। ये ज्वालाएँ सदियों से जल रही हैं और वैज्ञानिक रूप से भी यह एक रहस्य बना हुआ है। मंदिर समुद्र तल से लगभग 610 मीटर की ऊँचाई पर है और साल भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है। अगर आप ज्वाला देवी मंदिर की यात्रा पर हैं, तो आसपास की ये जगहें आपकी यात्रा को और भी यादगार बना सकती हैं। नीचे दी गई जगहें ज्वाला देवी से 10 से 100 किलोमीटर के दायरे में हैं, और इन्हें एक-दो दिनों में घूमा जा सकता है। मैंने प्रत्येक जगह के बारे में विस्तृत विवरण दिया है, जिसमें इतिहास, महत्व, स्थापत्य, दंतकथाएँ और आगंतुकों के अनुभव शामिल हैं।
1. कांगड़ा किला (Kangra Fort)

- विवरण: कांगड़ा किला भारत का सबसे पुराना और सबसे बड़ा किला है, जो हिमालय की तलहटी में फैला हुआ है। यह कटोच राजवंश द्वारा बनवाया गया था, जिसकी जड़ें महाभारत काल तक जाती हैं। किले का निर्माण राजा सुशर्मा चंद्र ने करवाया था, जो त्रिगर्त राज्य का शासक था। किला लगभग 463 एकड़ में फैला है और इसमें जैन व हिंदू मंदिरों के अवशेष हैं, जो 4वीं शताब्दी ईसा पूर्व के हैं। इतिहास में इसे कई आक्रमणों का सामना करना पड़ा, जैसे मुगल सम्राट जहांगीर ने 1620 में इसे जीता था। आज यह किला हिमालय के मनोरम दृश्यों के लिए जाना जाता है, और इसमें एक संग्रहालय है जहाँ प्राचीन मूर्तियाँ और हथियार प्रदर्शित हैं। आगंतुक अक्सर कहते हैं कि किले की दीवारों से डौलाधार पर्वतमाला का दृश्य अविस्मरणीय है, लेकिन सीढ़ियाँ चढ़ना थका देने वाला हो सकता है। दूरी: ज्वाला देवी से लगभग 35 किलोमीटर।
- पहुँचने के तरीके:
- बस: कांगड़ा बस स्टैंड से लोकल बसें उपलब्ध हैं (समय: 1 घंटा)।
- ट्रेन: निकटतम स्टेशन कांगड़ा (20 किमी), जहाँ से टैक्सी लें।
- हवाई जहाज: गग्गल एयरपोर्ट (धर्मशाला) से 40 किमी, टैक्सी से 1 घंटा।
- सबसे अच्छा मौसम: मार्च से जून और सितंबर से नवंबर। सर्दियों में ठंडा होता है, लेकिन दृश्य अधिक स्पष्ट रहते हैं।
- यात्रा की तैयारी: आरामदायक जूते पहनें क्योंकि 200-300 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। पानी, स्नैक्स और सनस्क्रीन साथ रखें। प्रवेश शुल्क लगभग 25 रुपये है, और गाइड किराए पर ले सकते हैं जो इतिहास की गहराई बताएंगे। गर्मियों में सुबह जल्दी जाएँ ताकि धूप से बचें।
2. ब्रजेश्वरी देवी मंदिर (Brajeshwari Devi Temple)

- विवरण: ब्रजेश्वरी देवी मंदिर एक प्रमुख शक्तिपीठ है, जहाँ देवी के बाएँ स्तन गिरे थे। इसे वज्रेश्वरी देवी के रूप में पूजा जाता है, जो देवी दुर्गा का रूप है। मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है, जब पांडवों ने इसे बनवाया था। 11वीं शताब्दी में महमूद गजनवी ने इसे लूटा, लेकिन 16वीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर ने इसे पुनर्निर्मित करवाया। मंदिर की छत सोने की चादर से ढकी है, और नवरात्रि में यहाँ विशाल मेला लगता है। दंतकथा के अनुसार, देवी ने यहाँ वज्र के रूप में प्रकट होकर राक्षसों का संहार किया। आगंतुक बताते हैं कि मंदिर का वातावरण शांतिपूर्ण है, और यहाँ की आरती में शामिल होना आध्यात्मिक अनुभव देता है। दूरी: ज्वाला देवी से 35 किलोमीटर।
- पहुँचने के तरीके:
- बस: ज्वाला देवी से सीधी बसें (समय: 1 घंटा)।
- ट्रेन: कांगड़ा स्टेशन से 5 किमी, ऑटो उपलब्ध।
- हवाई जहाज: गग्गल से 35 किमी, टैक्सी से पहुँचें।
- सबसे अच्छा मौसम: अप्रैल से जून। नवरात्रि (मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर) में विशेष उत्सव होते हैं, लेकिन भीड़ अधिक रहती है।
- यात्रा की तैयारी: मंदिर में जूते उतारें, सिर ढकें और मामूली कपड़े पहनें। त्योहारों के समय पहले से होटल बुक करें। दान-पेटी में योगदान दें, और स्थानीय प्रसाद जैसे लड्डू खरीदें। अगर स्वास्थ्य समस्या है, तो सीढ़ियाँ कम हैं लेकिन भीड़ से सावधान रहें।
3. चामुंडा देवी मंदिर (Chamunda Devi Temple)

- विवरण: चामुंडा देवी मंदिर देवी दुर्गा के उग्र रूप का प्रतिनिधित्व करता है, जहाँ बनासुर नदी बहती है। मंदिर का इतिहास 400 वर्ष पुराना है, जब राजा और एक ब्राह्मण ने देवी की अनुमति से इसे स्थानांतरित किया। यह शक्तिपीठ है, जहाँ देवी ने चंड-मुंड राक्षसों का वध किया। मंदिर में सुंदर नक्काशीदार द्वार और झरने हैं, और पास में एक छोटा सा तालाब है जहाँ मछलियाँ पाली जाती हैं। दंतकथा के अनुसार, देवी यहाँ प्रकट हुईं और भक्तों की रक्षा की। आगंतुक अक्सर कहते हैं कि मंदिर का प्राकृतिक वातावरण ध्यान लगाने के लिए आदर्श है, और नदी के किनारे पिकनिक मनाई जा सकती है। दूरी: ज्वाला देवी से 50 किलोमीटर।
- पहुँचने के तरीके:
- बस: धर्मशाला या कांगड़ा से बस (समय: 1.5 घंटा)।
- ट्रेन: कांगड़ा स्टेशन से 15 किमी।
- हवाई जहाज: गग्गल एयरपोर्ट से 20 किमी।
- सबसे अच्छा मौसम: सितंबर से नवंबर। गर्मियों में सुखद, लेकिन मानसून में सड़कें फिसलन भरी हो सकती हैं।
- यात्रा की तैयारी: सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं, इसलिए फिटनेस का ध्यान रखें। चमड़े की वस्तुएँ न लाएँ। दर्शन का समय सुबह 6 से शाम 8 बजे तक है, और नवरात्रि में विशेष पूजा होती है। पानी की बोतल और दवाएँ साथ रखें।
4. मसरूर रॉक कट मंदिर (Masroor Rock Cut Temple)

- विवरण: मसरूर रॉक कट मंदिर 8वीं शताब्दी के हैं, जो एक ही चट्टान से काटकर बनाए गए हैं और एलोरा की याद दिलाते हैं। ये उत्तर भारतीय नागर शैली में बने हैं, शिव, विष्णु, देवी और सूर्य देवता को समर्पित। मंदिरों में शिखर और पवित्र तालाब है, जैसा कि हिंदू ग्रंथों में वर्णित है। इतिहास में ये कटोच राजवंश से जुड़े हैं, और भूकंपों से क्षतिग्रस्त होने के बावजूद उनकी नक्काशी अद्भुत है। दंतकथा के अनुसार, ये मंदिर देवताओं द्वारा बनाए गए थे। आगंतुक बताते हैं कि सूर्योदय के समय मंदिरों का दृश्य जादुई लगता है, और यह फोटोग्राफी के लिए बेहतरीन जगह है। दूरी: ज्वाला देवी से 40 किलोमीटर।
- पहुँचने के तरीके:
- बस: कांगड़ा से लोकल बस (समय: 1 घंटा)।
- ट्रेन: कांगड़ा से 30 किमी।
- हवाई जहाज: गग्गल से 50 किमी।
- सबसे अच्छा मौसम: मार्च से जून। सर्दियों में शांत लेकिन ठंडा।
- यात्रा की तैयारी: धूप में घूमना पड़ता है, इसलिए टोपी, पानी और सनस्क्रीन रखें। प्रवेश निःशुल्क है, लेकिन गाइड लेना उपयोगी। फोटोग्राफी की अनुमति है, लेकिन ड्रोन न लाएँ।
5. करेरी झील (Kareri Lake)

- विवरण: करेरी झील एक प्राकृतिक हिमनद झील है, जो ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए स्वर्ग है। यह 9,700 फीट की ऊँचाई पर है, चारों तरफ बर्फीले पहाड़ और घने जंगल हैं। झील का पानी क्रिस्टल क्लियर है, और पास में एक छोटा मंदिर है। इतिहास में यह स्थानीय चरवाहों की जगह थी, लेकिन अब यह पर्यटन का केंद्र है। ट्रेक 13 किमी लंबा है, जो करेरी गाँव से शुरू होता है। दंतकथा के अनुसार, झील देवताओं का निवास है। आगंतुक कहते हैं कि झील पर पहुँचकर थकान भूल जाते हैं, और कैम्पिंग का अनुभव अद्वितीय है। दूरी: ज्वाला देवी से 60 किलोमीटर।
- पहुँचने के तरीके:
- बस: धर्मशाला से बस, फिर ट्रेक (समय: 2 घंटे + 4-6 घंटे ट्रेक)।
- ट्रेन: कांगड़ा से 40 किमी।
- हवाई जहाज: गग्गल से 30 किमी।
- सबसे अच्छा मौसम: अप्रैल से जून और अक्टूबर से नवंबर। सर्दियों में बर्फबारी होती है, जो ट्रेक को कठिन बनाती है।
- यात्रा की तैयारी: ट्रेकिंग गियर जैसे जूते, स्टिक, टेंट और भोजन साथ लाएँ। गाइड अनिवार्य है, खासकर शुरुआती लोगों के लिए। हाइड्रेशन और मौसम की जाँच करें। सर्दियों में बर्फ के लिए तैयार रहें।
6. धर्मशाला / मैक्लोडगंज (Dharamshala / McLeod Ganj)

- विवरण: धर्मशाला तिब्बती संस्कृति का केंद्र है, जहाँ दलाई लामा रहते हैं। मैक्लोडगंज को “लिटिल ल्हासा” कहा जाता है, जहाँ तिब्बती मठ, बाजार और ट्रेकिंग स्पॉट हैं। इतिहास में यह ब्रिटिश कैंटोनमेंट था, लेकिन 1960 में तिब्बती निर्वासितों का घर बना। आकर्षणों में नामग्याल मठ, भगसू झरना और ट्रेक शामिल हैं। दंतकथा के अनुसार, यहाँ देवताओं का वास है। आगंतुक तिब्बती भोजन और ध्यान सत्रों का आनंद लेते हैं। दूरी: ज्वाला देवी से 70 किलोमीटर।
- पहुँचने के तरीके:
- बस: ज्वाला देवी से सीधी बसें (समय: 2 घंटे)।
- ट्रेन: कांगड़ा से 50 किमी।
- हवाई जहाज: गग्गल एयरपोर्ट से 15 किमी (सबसे निकट)।
- सबसे अच्छा मौसम: मार्च से जून और सितंबर से नवंबर। सर्दियों में बर्फबारी का मजा लें।
- यात्रा की तैयारी: ठंडे कपड़े रखें। तिब्बती भोजन ट्राई करें, लेकिन पेट की दवा साथ लाएँ। बाजार में खरीदारी के लिए समय निकालें।
7. पालमपुर (Palampur)

- विवरण: पालमपुर को “उत्तर भारत की चाय राजधानी” कहा जाता है, जहाँ विशाल चाय बागान हैं। यहाँ की चाय फैक्टरियाँ घूमकर चाय बनाने की प्रक्रिया देखी जा सकती है, जैसे पलकिंग से पैकेजिंग तक। इतिहास में ब्रिटिशों ने 19वीं शताब्दी में चाय की खेती शुरू की। आकर्षणों में वाह टी एस्टेट, ताशी जोंग मठ और पैराग्लाइडिंग शामिल हैं। दंतकथा के अनुसार, यहाँ की भूमि उर्वर है देवताओं के आशीर्वाद से। आगंतुक चाय के बागानों में घूमकर ताजा चाय का स्वाद लेते हैं। दूरी: ज्वाला देवी से 60 किलोमीटर।
- पहुँचने के तरीके:
- बस: कांगड़ा से बस (समय: 1.5 घंटा)।
- ट्रेन: पठानकोट से 100 किमी।
- हवाई जहाज: गग्गल से 40 किमी।
- सबसे अच्छा मौसम: अप्रैल से जून। मानसून में हरियाली बढ़ जाती है।
- यात्रा की तैयारी: रेनकोट रखें अगर बारिश हो। लोकल चाय खरीदें और फैक्ट्री टूर बुक करें।
इस क्षेत्र तक पहुँचने के सामान्य तरीके
- हवाई जहाज से: निकटतम एयरपोर्ट गग्गल (धर्मशाला) है (ज्वाला देवी से 50 किमी), दिल्ली और चंडीगढ़ से उड़ानें। चंडीगढ़ (200 किमी) या शिमला (160 किमी) भी विकल्प। टैक्सी या बस से 1-4 घंटे लगते हैं।
- ट्रेन से: निकटतम स्टेशन ज्वालामुखी रोड (20 किमी), कांगड़ा (35 किमी), पठानकोट (80 किमी) या ऊना (70 किमी)। दिल्ली से ट्रेनें, फिर टैक्सी/बस।
- बस से: दिल्ली, चंडीगढ़ या शिमला से HRTC वोल्वो बसें (5-8 घंटे)। लोकल बसें सस्ती।
- कार/टैक्सी से: NH-154 से अच्छी सड़कें, लेकिन पहाड़ी रास्तों पर सावधानी बरतें।
सबसे अच्छा मौसम यात्रा के लिए
अप्रैल से जून और सितंबर से नवंबर सबसे अच्छा समय है, जब तापमान 15-30 डिग्री रहता है। मानसून (जुलाई-अगस्त) में बारिश से सड़कें बंद हो सकती हैं। सर्दियों (दिसंबर-फरवरी) में ठंडा, लेकिन नवरात्रि जैसे त्योहारों के लिए उपयुक्त।
यात्रा की तैयारी और टिप्स
- कपड़े और सामान: मामूली कपड़े पहनें (मंदिरों में सिर ढकें, जूते उतारें)। ठंडे मौसम में जैकेट, गर्मियों में हल्के कपड़े। चमड़े की वस्तुएँ न लाएँ। पानी, स्नैक्स, दवाएँ (मोशन सिकनेस के लिए) रखें।
- स्वास्थ्य और सुरक्षा: पहाड़ी रास्तों पर ड्राइविंग सावधानी से। ऊँचाई पर सिरदर्द हो सकता है, हाइड्रेटेड रहें। कोविड नियमों का पालन करें।
- बुकिंग: त्योहारों में होटल और बसें पहले बुक करें। बजट: 2000-5000 रुपये प्रति दिन।
- अन्य टिप्स: लोकल भोजन जैसे सिड्डू, धाम ट्राई करें। पर्यावरण का ध्यान रखें, प्लास्टिक न फेंकें। ट्रेकिंग के लिए गाइड लें।