एंड्योरेंस शेकल्टन की अविश्वसनीय यात्रा:जब जिद ने मौत को ललकारा Endurance Ship and Shackleton Incredible Journey

एंड्योरेंस शेकल्टन की अविश्वसनीय यात्रा

एंड्योरेंस जहाज और शेकल्टन का खतरनाक सपना 28 क्रू मेंबर्स के साथ अंटार्कटिका पार करने की जंग

Endurance Ship and Dangers Dream of Shackleton to Cross Antarctica with 28 Crew Members.

4 नवंबर 1914 ब्रिटेन का एंडोरेंस जहाज कुछ तूफानी समुद्रों को पार करके दुनिया के सबसे खतरनाक और रहस्यमई कॉन्टिनेंट अंटार्कटिका की तरफ आगे बढ़ रहा है। इस जहाज में 28 लोगों का क्रू मौजूद है और कमांड संभाले हैं एक एक्सप्लोरर सर अर्नेनेस्ट शेकल्टन (Sir Ernest Shackleton)। जो कुछ ऐसा करना चाहते हैं जो इतिहास में आज तक किसी ने नहीं किया है। पूरे अंटार्कटिका के कॉन्टिनेंट को पैदल पार करना। सही सुना आपने, एक ऐसे जमाने में जहां कोई स्मार्टफोन नहीं, कोई जीपीएस नहीं, कोई मॉडर्न टेक्नोलॉजी नहीं। यह इस बर्फीले कॉन्टिनेंट को -50° सेल्सियस की ठंड में बर्फीले तूफानों के बीच ऊपर से लेकर नीचे तक यह पूरा पैदल पार करना चाहते हैं। इनका प्लान है अपने जहाज के जरिए अंटार्कटिका की तट पर पहुंचने, वेडल सी से होते हुए। (एंड्योरेंस शेकल्टन की अविश्वसनीय यात्रा:जब जिद ने मौत को ललकारा).

 नक्शे पर देखिए एग्जैक्टली यहां पर यह जमीन पर उतरेंगे और वहां से फिर पैदल ट्रैक करते हुए। यह साउथ पोल जाएंगे और फिर उसे क्रॉस करके चलते-चलते रॉस सी (ROSS SEA) तक पैदल पहुंचेंगे। टोटल लगभग 2900 कि.मी. का ट्रैक और अगर सब कुछ प्लान के अनुसार चला तो यह करने में करीब 120 दिन का समय लगेगा। लेकिन यह प्लान कितनी बुरी तरीके से फेल होता है और आगे इन्हें क्या झेलना पड़ता है। ना तो यह इमेजिन कर सकते थे उस वक्त और ना ही आप इसकी कल्पना कर सकते हैं।

एंडोरेंस जहाज साउथ जॉर्जिया आइलैंड पहुंचता है

 5 नवंबर 1914 ये एंडोरेंस जहाज साउथ जॉर्जिया आइलैंड (South Georgia Island) के एक वेलिंग स्टेशन पर पहुंचता है। इनके रास्ते में इंसानी दुनिया की यह आखिरी बस्ती थी। नक्शे पर अगर आप इसे देखोगे तो यह ग्रुप ऑफ आइलैंड्स साउथ अमेरिका की टिप के पास मौजूद है। इनके नीचे आता है अंटार्कटिका का बाहर निकला हुआ हिस्सा जिसे अंटार्कटिका पेनसुला कहा जाता है और साथ ही में मौजूद है वेडेडल सी। एक ऐसा समुद्र जो तीनों तरफ से अंटार्कटिका की जमीन से घिरा हुआ है। इसकी वजह से यहां जमी हुई बर्फ आसानी से बाहर नहीं निकल पाती और बर्फ की एक डेंस परमानेंट लेयर बन जाती है। इस दिन मौसम बड़ा खराब था और वेडल सी (Weddell Sea) में कंडीशंस भी उतनी ही खराब थी।

वहां मौजूद लोग शेकल्टन से कहते हैं कि इस मिशन को टाल दो। डिले कर दो नहीं तो इन कंडीशंस में वहां जाना बहुत बहुत ज्यादा रिस्की होगा। लेकिन शेकल्टन अपनी ज़िद पर अड़े रहे। उन्होंने कहा कोई फर्क नहीं पड़ता। हम आगे चलते रहेंगे। 5 दिसंबर 1914 एंडोरेंस का जहाज आगे बढ़ता रहा लेकिन जल्द ही वही हुआ जिसका डर था। वेडल सी में बर्फ उम्मीद से कई गुना ज्यादा भारी और डेंस निकली। लेकिन फिर भी शेकल्टन आगे बढ़ते रहे।

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जब एंड्योरेंस जहाज़ पूरी तरह से बर्फ में फँस गया

18 जनवरी 1915 कुछ समय तक बर्फ के किनारे-किनारे चलने के बाद यह जहाज पूरी तरीके से बर्फ में फंस गया। कुछ दिन बाद कुछ क्रू मेंबर्स ने जहाज से 50 गज दूर बर्फ में 15 फीट की एक दरार देखी। यह छोटी सी दरार यहां से निकलने की उनकी आखिरी उम्मीद थी। तो 3 घंटे तक शिप को पूरी ताकत के साथ इंजन की फुल स्पीड पर चलाकर बर्फ से निकालने की कोशिश की जाती है। लेकिन ये शिप 1 इंच भी नहीं हिलती। क्रू मेंबर्स जहाज से बाहर निकल कर आ, कुल्हाड़ी और छेनी से बर्फ काटने की कोशिश करते हैं, मगर नाकाम रहते हैं। धीरे-धीरे यह जहाज जिस बर्फ की चट्टान में फंसा था, वह बहते-बहते जमीन से और दूर जाने लगी। अंटार्कटिका की जमीन पर वो पॉइंट जहां क्रू को लैंड करना था, उसका नाम था वासल बे। लेकिन, यह बर्फ में फंसा जहाज धीरे-धीरे अब और दूर जा रहा था इससे। 60 मील दूर पहुंच गया। (एंड्योरेंस शेकल्टन की अविश्वसनीय यात्रा:जब जिद ने मौत को ललकारा)

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दिक्कत यह थी कि इस बर्फ के टुकड़े के बीच और वासल बे के बीच में फिर भी कुछ पानी मौजूद था। तो क्रू अपने जहाज से उतर कर पैदल चलकर वहां तक नहीं जा सकता था। लेकिन दूसरी तरफ बर्फ में फंसे होने के कारण जहाज भी हिल नहीं पा रहा था। जहाज को निकालने की इस कोशिश में देखतेदेखते हफ्ते महीने बीतते जाते हैं। अंटार्कटिका में सर्दियों का मौसम आने वाला था और यहां पर सर्दियों का मतलब था 24 आवर्स ऑफ डार्कनेस। हफ्तों महीनों तक 1 मिनट भी सूरज की रोशनी नहीं दिखेगी। शेकल्टन सबको जहाज में ही सर्दियां काटने का आदेश देते हैं। लेकिन सर्दियों का मतलब ठंड का बढ़ना, बर्फबारी और बर्फीले तूफान भी था। धीरे-धीरे बर्फ का प्रेशर बढ़ने लगता है जहाज पर। इस जहाज पर एक फोटोग्राफर फ्रैंक हर्ली भी मौजूद थे जिनके पास एक कैमरा था। तो उस वक्त ये कुछ फोटोज लेते हैं जिन्हें आप स्क्रीन पर देख सकते हैं। इनमें आप साफ देख सकते हो कि कैसे पास मौजूद बर्फ जहाज को दबोचने लग रही है।

जहाज़ में दरारें पड़ गईं और पानी भरने लगा

30 सितंबर 1915 जहाज के किनारों पर साफ दरारें दिखने लग गई थी। लेकिन क्रू को अभी भी उम्मीद थी। 24 अक्टूबर 1915 शाम को 6:45 अचानक से तेज प्रेशर की वजह से बर्फ फट जाती है और इसका एक टुकड़ा जहाज पर टूट पड़ता है। बर्फ की एक भारी चट्टान एंडोरेंस का स्टर्न पोस्ट तोड़ देती है जिससे पानी जहाज के अंदर घुसने लगता है। सभी क्रू मेंबर्स तुरंत काम पर लग जाते हैं। पानी को पंप से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं। लगातार तीन दिन तक यह पानी बाहर निकालने की कोशिश करते रहते हैं। लेकिन पानी को जितना खाली किया जा रहा था उससे ज्यादा तेजी से यह अंदर आ रहा था। तापमान -8.5°C सेल्सियस। लेकिन फिर भी क्रू के चेहरे पर ना कोई डर था ना कोई घबराहट। कुछ लोग बाहर निकल कर बर्फ की उन चट्टानों को काटने लगे जो जहाज पर प्रेशर डाल रही थी। लेकिन यह भी ज्यादा काम नहीं आया। जहाज में पानी अभी भी भरे जा रहा था। तेजी से भरे जा रहा था और जहाज पर बर्फ का प्रेशर कम नहीं हो रहा था। आखिरकार शेकल्टन हार मानकर क्रू को आदेश देते हैं कि जहाज को खाली कर दो। नीचे उतर जाओ। इस वक्त एक क्रू मेंबर टॉम मैक्लॉयड इस पूरी सिचुएशन को देखकर कहते हैं, “मुझे नहीं लगता अब हम अपने घर कभी वापस लौट पाएंगे।” इस जहाज को फंसे हुए 9 महीने से ज्यादा हो चुके थे।

क्या अंटार्कटिका को पैदल पार करने का सपना भी शेकल्टन का टूट चुका था

27 अक्टूबर 1915 एक धमाके जैसी तेज आवाज सुनाई देती है। शेकल्टन पीछे मुड़कर देखते हैं तो उन्हें एक बहुत ही शॉकिंग चीज दिखाई देती है। जहाज का पिछला हिस्सा अचानक से 20 फुट ऊपर उठ गया है। रडर और स्टर्न पोस्ट उखड़ जाता है। जहाज की लकड़ियां टूटने लगती है और जहाज के अगले हिस्से में बड़ी तेजी से पानी भर जाता है। थैंकफुली सारे क्रू मेंबर्स इस वक्त तक जहाज से बाहर निकल चुके थे। कुछ ही देर बाद यह पानी बर्फ में बदल जाता है और इसके वजह से पूरा जहाज का आगे का हिस्सा धीरे-धीरे नीचे धंसने लगता है। इस जहाज के डूबने के साथ-साथ अंटार्कटिका को पैदल पार करने का सपना भी शेकल्टन का टूट चुका था। लेकिन अब सवाल और भी ज्यादा गंभीर था। क्या जिंदा वापस लौटा भी जा सकता है? क्रू मेंबर्स के पास कोई रेडियो नहीं था, कोई टेलीफोन नहीं, कोई जरिया नहीं बाहर की दुनिया से कांटेक्ट करने का।

यह अंटार्कटिका के समुद्र में मौजूद एक बर्फ के टुकड़े पर फंसे हुए थे। एक ऐसा बर्फ का टुकड़ा जो खुद पानी में बहे जा रहा था। इस टुकड़े पर बर्फ की एक बड़ी सी चट्टान मौजूद थी जिस पर क्रू अपना कैंप लगाता है। सबसे पहले अकाउंट्स देखा जाता है। आखिर क्या-क्या चीजें इनके पास यहां बची हैं? कितना खाना पानी इनके पास मौजूद है? इसका जवाब निकलता है इनके पास तीन छोटी बोट्स थी। एक स्लज जिसके जरिए बर्फ में चला जा सकता था। कुछ जरूरी पर्सनल आइटम्स लोगों के और लगभग 1 महीने का राशन।

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सिर्फ 1 महीने का खाना। रात में सोने के लिए जगह भी कम पड़ गई। इसलिए कई लोगों को बर्फ पर ही सोना पड़ा। ज्यादातर लोग एक दूसरे के साथ चिपक कर सोए ताकि ठंड में फ्रीज ना हो जाए। कोई और पास से गुजरने वाला जहाज इन्हें यहां ढूंढ ले। इसका चांस लगभग इंपॉसिबल था क्योंकि यह अंटार्कटिका के ओशन में थे। यहां कोई और जहाज नहीं आता है। इंसानों को देखे हुए इन्हें एक साल से ऊपर हो चुका था। बाहरी दुनिया को तो पता तक नहीं था कि यह जिंदा भी है या नहीं। ना कोई मैसेज भेज सकते थे ना कोई मदद आने की उम्मीद थी।

शेकल्टन के पास सिर्फ खुद की स्किल्स और एक्सपीरियंस था।

शेकल्टन के पास सिर्फ एक चीज थी खुद की स्किल्स और खुद के एक्सपीरियंस पर भरोसा। लेकिन यह भरोसा उन्हें और उनके क्रू को और कितने दिन तक जिंदा रख सकता है। जब खाने की कमी पड़ेगी तो यहां क्या किया जाएगा? बर्फ पर कैंप लगाना भी कोई अच्छा सॉल्यूशन नहीं था क्योंकि बर्फ कभी भी टूट सकती थी। इन्हें जरूरत थी जमीन की। शेकल्टन अपनी कैलकुलेशंस करते हैं और अंदाजा लगाते हैं सबसे करीबी जमीन जो इनके पास है वो है पॉलेट आइलैंड। बर्फीले समुद्र के पार करीब 550 कि.मी. दूर अंटार्कटिका की टिप पर मौजूद एक आइलैंड। हेरानी की बात यह थी कि साल 1903 में एक स्वीडिश जहाज के फंसने के बाद इसी पॉलेट आइलैंड पर रेस्क्यू गियर छोड़ा गया था। ताकि भविष्य में अगर कोई फंसे अंटार्कटिका में तो इस आइलैंड का इस्तेमाल कर सके रेस्क्यू के लिए। और यह सामान खुद शकलटन ने ही खरीदा था।

अब 12 साल बाद शेकल्टन खुद ही इसके भरोसे थे। यह क्रू के साथ मिलकर फैसला करते हैं कि पॉलेट आइलैंड की तरफ बढ़ने की कोशिश की जाए। सारा सामान स्लेजेस पर बर्फ में खींच कर ले जाया जाएगा और इसलिए शकल्टन ने आदेश दिया हर आदमी सिर्फ 2 पाउंड तक का जरूरी सामान ही ले सकता है। कई लोगों ने जहाज से उतरते समय अपने कुछ पर्सनल आइटम्स भी साथ में ले लिए लेकिन शेकल्टन ने कहा कोई भी चीज तुम्हारी जान से ज्यादा कीमती नहीं है। शेकल्टन अपने खुद के कुछ गोल्ड कॉइंस और अपनी बाइबल को वहां बर्फ में ही छोड़ देते हैं। जहाज के फोटोग्राफर फ्रैंक हर्ली के पास करीब 400 फोटोस थी। फोटोस के नेगेटिव्स थे। लेकिन दो पाउंड की लिमिट के कारण वो इनमें से केवल 150 नेगेटिव्स ही अपने साथ लेकर आ सके।

150 फोटो बनी ऐतिहासिक घटना का सबूत

यही 150 फोटो बाद में जाकर दुनिया के सामने इस ऐतिहासिक घटना का सबूत बनने वाली थी। कुछ हफ्ते बाद ही खाने की कमी की वजह से क्रू के साथ आए कुत्तों के पप्पीज को मारना पड़ता है और कोई खाने का ऑप्शन नहीं था। कुछ दिन की तैयारी के बाद सारा सामान बोट्स और स्लेजेस पर लोड कर दिया जाता है। हर बोट का वजन लगभग एक टन था और इन्हें खींचना आसान नहीं था। किस्मत भी इन लोगों का साथ नहीं दे रही थी क्योंकि इस वक्त तक गर्मियों का मौसम वापस आ गया था अंटार्कटिका में और तापमान बढ़ने लगे थे जिसकी वजह से बर्फ का ऊपर का सरफेस सॉफ्ट हो गया और सामान खींचना और मुश्किल हो गया।

3 घंटे की मेहनत के बाद जब क्रू ने वापस मुड़कर देखा तो उन्हें दिखा कि वो सिर्फ 1 मील का डिस्टेंस चल पाए हैं। आगे का रास्ता और खराब होता जाता है। शेकल्टन फैसला करते हैं कि यहीं कैंप कर लिया जाए जब तक यह बर्फ का टुकड़ा बहकर थोड़ा और जमीन के पास नहीं आ जाता। बर्फ के जिस टुकड़े पर यह कैंप लगाया जाता है, यह लोग उसे नाम दे देते हैं ओशन कैंप। शेकल्टन अपने क्रू में मौजूद हर व्यक्ति को कोई ना कोई काम देते हैं ताकि वह बोर ना हो और वो डिप्रेस्ड ना फील करने लगे।

एंडोरेंस जहाज बर्फ के नीचे डूब ने से मेंबर्स की बचने की आशा ख़त्म हो गई

21 नवंबर 1915, एंडोरेंस जहाज के पिछले हिस्से पर और प्रेशर पड़ता है जिसकी वजह से इस बार अब वो अचानक से पानी में उछलने लगता है। कुछ देर तक हवा में रहता है और फिर धीरे-धीरे पूरा जहाज बर्फ के नीचे डूब जाता है। सभी क्रू मेंबर्स कुछ किलोमीटर ही दूर पहुंच पाए थे। इन्हें यह पूरी घटना अपनी आंखों के सामने होती हुई दिखती है। हालांकि जहाज इन्होंने पहले ही खाली कर दिया था। लेकिन जहाज का इस तरीके से इनके सामने डूबना इन पर एक गहरा इमोशनल शौक डालता है। मानो दुनिया से इनका आखिरी लिंक टूट गया हो। अब सिर्फ यह बर्फ की चट्टान थी और इस पर बनाया इनका यह ओशन कैंप। अगले कुछ दिनों तक चीजें ठीक-ठाक चली लेकिन कुछ हफ्तों बाद अचानक से बर्फ का टुकड़ा ईस्ट की दिशा में बहने लगा। जमीन से और दूर बहने लगा।

इसलिए 23 दिसंबर 1915 को शकलटन फैसला करते हैं ओशन कैंप को छोड़ दिया जाए और एक बार फिर से पैदल आगे चलने का फैसला किया जाए। लेकिन सिर्फ कुछ ही किलोमीटर आगे चलने के बाद अचानक से पतली बर्फ और पानी सामने आ जाता है। अब यह लोग ना आगे बढ़ सकते थे ना पीछे लौट सकते थे। एक बार फिर से यह बर्फ की इस नई चट्टान पर कैंप लगा लेते हैं। खाने की कमी से बचने के लिए शेकल्टन ने कुछ बड़े स्ट्रिक्ट कंट्रोल्स लगाए। क्रू को हर दिन का एक बिस्किट दिया जाता।

कुछ डाइल्यूटेड दूध, कुछ कोकोआ और एक छोटा सा अमाउंट हाई फैट मीट पेस्ट का जो उनके पास कैंस में मौजूद थी। इसके अलावा क्रू मेंबर्स वहां मौजूद सील्स और पेंग्विंस अगर दिख जाते तो उनकी हंटिंग करने लगे खाने के लिए। असलियत में खाने की कमी अभी भी थी लेकिन शेकल्टन फूड क्वांटिटीज को लेकर अपने क्रू मेंबर्स से अक्सर झूठ बोलते ताकि उनका मोटिवेशन बढ़ा सके। डोंट वरी इनफूड टू कीप अलाइव। वो जानते थे कि अगर इस सिचुएशन से जिंदा बचकर निकलना है तो बहुत लंबा समय लग सकता है। ऐसे में अगर किसी चीज की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ेगी तो वो है मेंटल स्ट्रेंथ।

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कई महीनों तक इनका इस नई चट्टान पर लगाया कैंप चलता रहता है। थैंकफुली बर्फ सही डायरेक्शन में मूव करती है। दिन बीतते जाते हैं। दिन हफ्तों में बदल जाते हैं और हफ्ते महीनों में देखते ही देखते नया साल शुरू हो जाता है और 23 मार्च 1916 की सुबह शकल्टन को कोहरे के बीच कुछ दूर दिखाई देता है। जैसे-जैसे कोहरा छटता है, पहाड़ दिखने लगते हैं और शेकल्टन पहचानते हैं कि यह तो जॉइन विल आइलैंड (Joinbill Island) है। लेकिन जॉइन विल आइलैंड का दिखना यहां कोई अच्छी खबर नहीं थी क्योंकि ये आइलैंड पेनसुला के बिल्कुल ऊपरी डिब पर मौजूद था। इसका मतलब यह था कि ये बर्फ के साथ बहते-बहते इतना आगे बह गए थे कि पॉलेट आइलैंड पीछे छूट चुका था। जॉइन विल आइलैंड केवल 57 माइल्स दूर था पॉलेट आइलैंड से लेकिन वेस्ट में 90° के एंगल पर और बीच में कई सारी बर्फ मौजूद थी। इस बर्फ को पार कर पाना नामुमकिन था। 

दुनिया के सबसे ख़तरनाक ड्रेक पैसेज को पार करना (Drake Passage)

The Drake Passage The Most Treacherous Ocean Crossing Where Waves Reach 80-100 Feet.

तो शेकल्टन अपने नक्शे की तरफ देखते हैं। ऊपर की तरफ नॉर्थ में इन्हें दिखाई देता है कि अगर इसी डायरेक्शन में बहते गए तो सिर्फ दो और आइलैंड्स रास्ते में बचे हैं। क्लेरेंस आइलैंड और एलीिफेंट आइलैंड। इसके बाद हजारों किलोमीटर तक सिर्फ खाली समुद्र। एक ऐसा समुद्र जहां पर इतनी ऊंची वेव्स उठती हैं जहां से बच पाने का चांस तो लगभग खत्म समझो। साउथ अमेरिका की सदर्न मोस्ट टिप और अंटार्कटिका की नॉर्दन मोस्ट टिप के बीच में जो समुद्र मौजूद है उसे ड्रक्स पैसेज कहा जाता है और दुनिया का यह सबसे खतरनाक समुद्र है। यहां 12-12 मीटर ऊंची वेव्स उठती हैं।

20,000 से ज्यादा सेलर्स अपनी जान खो चुके हैं इस ड्रक्स पैसेज में और कम से कम 800 जहाज हैं इतिहास में जो इस ड्रेक्स पैसेज में आकर डूबे हैं। आज के दिन भी दोस्तों 2025 में भी अगर आप इसे शिप के थ्रू क्रॉस करने की कोशिश करोगे तो कुछ ऐसे नजारे आपको दिखाई देंगे। बड़े से बड़े क्रूज जहाजों को हिला कर रख देता है ये ड्रैक्स पैसेज। तो हां शेकल्टन जानते थे कि अगर इस बर्फ के टुकड़े पर उनके क्रू मेंबर्स ड्रैक्स पैसेज तक पहुंच गए तो शोर शॉट उनकी मौत होगी।

इस बीच खाने की कमी भी भारी पड़ने लग गई थी। जो सड़ा गला मीट कुत्तों के लिए अलग किया गया था उसमें से भी कम बदबू वाला हिस्सा इंसानों को खाने के लिए देना पड़ रहा था। पीने के पानी के लिए सब लोग एक छोटी सी कैन में बर्फ डालकर बॉडी से चिपका कर रखते ताकि शरीर की गर्मी से यह बर्फ पिघल जाए और इन्हें पीने के लिए कुछ साफ पानी मिल पाए। लेकिन एक पूरी कैन में सिर्फ एकद चम्मच ही पानी निकल पाता था एक बार में। एक इंटरेस्टिंग फैक्ट यहां पर यह था कि हालांकि इस क्रू में 28 लोग थे टोटल में लेकिन ऑफिशियली यह 27 ही होने थे।

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जब समुद्री जानवरों को खाकर ज़िंदा रहना पड़ा

अगस्त 1914 में जब यह जहाज ब्रिटेन से रवाना हुआ था, एक 28वां व्यक्ति ब्लैकबरो नाम से इसमें छुप कर आ गया था। यह एक ऐसा बंदा था जिसे शेकल्टन पहले ही मना कर चुके थे कि हम तुम्हें अपने जहाज का हिस्सा नहीं बनाएंगे। लेकिन फिर भी यह सीक्रेटली छुपकर जहाज में घुस आया। बाद में पता चलने पर शकल्टन ने इससे सीधा कहा था अगर हमें खाने की कमी पड़ेगी तो सभी क्रू मेंबर्स में से सबसे पहले तुम्हें खाया जाएगा। एक बहुत ही शॉकिंग और दर्दनाक चीज बहुत से लोग इसकी जगह मरना ही प्रेफर करेंगे। लेकिन थैंकफुली शेकल्टन के क्रू को यह करने की जरूरत नहीं पड़ी। इनकी किस्मत अच्छी थी कि एक दिन इन्हें एक सी लेपर्ड दिखा जिसका शिकार करके इन्हें लगभग 1000 पाउंड की मीट मिल गई। इसके अलावा कई क्रू मेंबर्स ने अपने कुत्तों को भी मार दिया ताकि उन्हें खाया जा सके। इसके बाद अगले कुछ महीने तक थैंकफुली खाने की कोई कमी नहीं थी।

7 अप्रैल 1916 बर्फ के टुकड़े पर बहते-बहते क्रू को फाइनली क्लेरेंस आइलैंड दिखाई देता है। यह नॉर्थ की डायरेक्शन में करीब 83 कि.मी. दूर था इन्होंने अंदाजा लगाया। इस आइलैंड को देखते ही इनके अंदर एक नई उम्मीद जाग गई। लेकिन तभी अचानक से हवा ने अपनी दिशा बदल ली। हवा ईस्ट की डायरेक्शन में बहने लगी। ईस्ट की दिशा में इसके बाद कोई और आइलैंड मौजूद नहीं था। कोई और जमीन मौजूद नहीं थी। कुछ ही घंटों में शकलन और उनके क्रू की सारी उम्मीदें टूट गई। बर्फ की जिस चट्टान पर इन्होंने अपना कैंप लगाया था, वह भी टूट-टूट कर छोटा होता जा रहा था।

अब यह केवल सिर्फ 50 मीटर लंबा बचा था। इस बर्फ के टुकड़े पर क्रू के लिए और ज्यादा टाइम रहना खतरनाक बनता जा रहा था। इसलिए शकल्टन यहां पर फैसला लेते हैं। सभी क्रू मेंबर्स को तीन बोट्स में बिठाकर आगे क्लरेंस आइलैंड की तरफ जल दिया जाए। यह पानी सिर्फ पानी नहीं था। बीच-बीच में बर्फ की बहुत सारी चट्टानें और आइसबर्ग्स मौजूद थे। कुछ देर बाद चलकर उन्हें बर्फ की एक और मजबूत चट्टान मिलती है। उतर कर वो अपना एक नया कैंप लगा लेते हैं। लेकिन जैसे ही इन्होंने अपना कैंप लगाया, इस आइसबर्ग में एक दरार पड़ने लगती है। और अचानक से इनका एक क्रू मेंबर पानी में गिर जाता है। इस लड़के का नाम था फायरमैन अर्नी होलनेस। बाकी सभी लोग जल्दी से कोशिश करते हैं इसको पानी से निकालने की। लेकिन इससे पहले इन्हें संभलने का मौका मिल पाता। यह आइसबर्ग दो हिस्सों में टूट जाता है।

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शेकल्टन एक तरफ एक हिस्से में अकेले रह जाते हैं और बाकी क्रू दूसरे हिस्से में अंधेरे में बहता जाता है। किसी को समझ नहीं आया क्या करें। उनका लीडर उनका कमांडर इतने टाइम से जो उन्हें कमांड्स दिए जा रहा था वो अचानक से अंधेरे में गायब हो गए। लेकिन तभी अंधेरे के बीच से शैकल्टन की आवाज आती है। इसके बाद जाकर कुछ क्रू मेंबर्स बोट निकालकर शकलटन को वापस लेकर आते हैं। इस पहले बर्फ के टुकड़े पर लौटने के बाद सबसे पहले शेकल्टन होलनेस के बारे में पूछते हैं जो पूरी तरीके से कांप रहा था। पानी में गिरने के बाद हाइपोथर्मिया होने का रिस्क बहुत बढ़ गया था। कोई आग जलाने का जरिया भी नहीं था। अगर कुछ नहीं किया गया तो इसी तरीके से कांपतेकांपते यह मारा जाएगा।

शेकल्टन एक बार फिर से अपनी स्किल्स और एक्सपीरियंस का इस्तेमाल करते हैं और उसे आदेश देते हैं कि वह तब तक चलता रहेगा जब तक उसकी बॉडी हीट इतनी नहीं हो जाती कि उसके सारे कपड़े सूख जाए। यह बेचारा लड़का पूरी रात भर चलता रहता है। चलता रहता है। लेकिन इसी की वजह से धीरे-धीरे जाकर उसके कपड़े सूख जाते हैं। उसे ठंड लगनी कम हो जाती है। इसी बीच हवा बार-बार अपनी दिशा बदले जा रही थी। कभी बर्फ का टुकड़ा इस तरफ जाता तो कभी उस तरफ। चार बार उन्होंने अपना टारगेट बदला। पहले वह सोचते क्लेरेंस आइलैंड पहुंचेंगे। फिर सोचते नहीं किंग जॉर्ज आइलैंड जाया जाए। फिर उन्होंने सोचा नहीं होप पे और अंत में डिसाइड किया नहीं एलीिफेंट आइलैंड की तरफ बह जाना चाहिए। एलीिफेंट आइलैंड आखिरी आइलैंड था ड्रेक्स पैसेज से पहले। नॉर्थवेस्ट की डायरेक्शन में 160 कि.मी. दूर क्योंकि इनका आइसबर्ग नॉर्थ की डायरेक्शन में बह रहा था। इसलिए धीरे-धीरे तापमान बढ़ता गया था।

अब टेंपरेचर -8° सेल्सियस हो गया था। आसपास की बर्फ कम हो रही थी। लेकिन बर्फ कम होने का मतलब यह भी था कि फ्रेश वाटर कम हो रहा है। पानी अब बिल्कुल खत्म होने लगा था। प्यास की वजह से सबके होंठ सूझ कर फट गए थे। गला इतना सूख चुका था कि खाना निगलना भी मुश्किल हो रहा था। सभी को सील का रॉ मीट दिया जाता है ताकि इसमें मौजूद खून की मदद से खाना स्वॉलो करना आसान हो पाए। इसी बीच धीरे-धीरे इनका बर्फ का टुकड़ा एलीफेंट आइलैंड की तरफ बहता गया। अब यह एलीफेंट आइलैंड सिर्फ 50 कि.मी. और दूर था। शेकल्टन आदेश देते हैं सभी बोट्स को पानी में उतारा जाए और आखिरी का यह सफर बोट्स के जरिए किया जाएगा।

किस्मत पर यकीन नहीं हुआ तीनों बोट सही सलामत एलीफेंट आइलैंड आइलैंड तक पहुंच जाती हैं

15 अप्रैल 1916 क्रू को अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था। यह तीनों बोट सही सलामत इस आइलैंड तक पहुंच जाती हैं और 497 डेज बाद क्रू मेंबर्स के पैरों के नीचे उन्हें फाइनली जमीन मिलती है। हैविंग बीन थ्रू हेल दिस डेट अनहबिटेड लंप ऑफ़ रॉक सी नथिंग टू हेवन। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उनके पैर एक्चुअली में अब सॉलिड जमीन पर थे। किसी बर्फ के टुकड़े पर नहीं।

सभी लोग बहुत खुश थे। लेकिन वह इस बात से अनजान थे कि उनकी मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई थी। उनके एक क्रू मेंबर ब्लैक बरो के पैर काम करना बंद कर चुके थे। एक और क्रू मेंबर रिकनसन को आइलैंड पहुंचते ही हार्ट अटैक आ जाता है। लेकिन किसी तरीके से वह फिर भी सर्वाइव कर पाते हैं। सबसे बड़ी मुसीबत यह थी कि एलीिफेंट आइलैंड पूरी तरीके से वीरान था। यहां कोई आदमी नहीं रहता था। ना ही कोई रेस्क्यू सप्लाई थी, ना ही कोई कांटेक्ट करने का तरीका था। इस आइलैंड की लोकेशन खुद ऐसी थी कि कोई इस आइलैंड पर घूमने भी नहीं आता था। कोई पास से जहाज भी नहीं गुजरता था। तो प्रॉब्लम अभी भी वही थी कि वापस घर कैसे पहुंचा जाए। नक्शे पर देखकर शेकल्टन को तीन ऑप्शंस दिखाई देते हैं।

endurance ship

पहला केपहन तक जाना साउथ अमेरिका के सदर्न मोस्ट टिप जो कि करीब 800 कि.मी. दूर था नॉर्थवेस्ट में। दूसरा ऑप्शन फाल्कनैंड आइलैंड्स तक जाना जो करीब 880 किलोमीटर दूर थे। साउथ अमेरिका की ईस्ट में या फिर तीसरा ऑप्शन मदद मांगने के लिए नॉर्थ ईस्ट में साउथ जॉर्जिया आइलैंड तक जाना। जो 1300 किमी दूर था। पहले दो ऑप्शंस ज्यादा नजदीक थे लेकिन वहां जाने का मतलब था ड्रक्स पैसेज से गुजरना। शेकल्टन ने तीसरा ऑप्शन चुना। उनका मानना था कि हवाएं भी और समुद्र भी मेरा ज्यादा साथ देगा अगर मैं साउथ जॉर्जिया आइलैंड की तरफ जाऊं तो। क्रू की हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि सबको साथ ले जाना पॉसिबल नहीं था। शेकल्टन ने फैसला किया कि वह पांच लोगों की एक छोटी सी टीम लेकर साउथ जॉर्जिया की तरफ बोट में जाएंगे। वहां पहुंचकर यह किसी जहाज से मदद मांगेंगे और दूसरी तरफ जो टीम आइलैंड पर रुकी है वो एलीिफेंट आइलैंड पर ही अपना कैंप सेटअप करेगी।

24 अप्रैल 1916 शेकल्टन अपनी पांच लोगों की छोटी सी टीम के साथ साउथ जॉर्जिया आइलैंड की तरफ निकल पड़ते हैं। अगर आप इनके प्लान रूट को नक्शे पर देखोगे तो आपको दिखेगा कि ड्रक्स पैसेज पूरी तरीके से अवॉइड नहीं किया जा रहा है। थोड़ा बहुत तो फिर भी ड्रक्स पैसेज के अंदर से गुजरना पड़ेगा यहां पहुंचने के लिए। लेकिन इसके अलावा और कोई ऑप्शन भी नहीं था। इस छोटी सी हाथ से चलाने वाली नाव में यह दुनिया के सबसे खतरनाक समुद्री रास्ते के अंदर घुस जाते हैं। इतने लंबे डिस्टेंस को पार करने के लिए यह लोग बारी-बारी से 4 घंटे नाव चलाते और 4 घंटे आराम करते। लेकिन इस छोटी सी नाव में आराम तो केवल नाम का था। उनका पूरा सफर समुद्र की तेज लहरों से भीगते हुए उल्टी करते हुए थकान से टूटते हुए बीतता। अप्रैल का समय यानी अंटार्कटिका में सर्दियों का मौसम शुरू हो गया था।

जहाँ सूरज सिर्फ़ कुछ घंटों के लिए ही निकलता है

सूरज सिर्फ कुछ ही घंटे के लिए बाहर निकलता। बाकी पूरे 20 से ज्यादा घंटे अंधेरे में बीतते। यह कुछ घंटे की सनलाइट बहुत ही जरूरी थी क्योंकि इसी की मदद से ये सेक्सटेंट इंस्ट्रूमेंट का इस्तेमाल करते और डायरेक्शन का पता लगा पाते कि जिस डायरेक्शन में यह नाव चला रहे हैं वो सही डायरेक्शन ही है या नहीं। घंटों तक यह नाव चलाते गए, चलाते गए। यह घंटे दिन में बदल गए। रास्ते में बोट में बार-बार पानी भर जाता है जिसे पंप का इस्तेमाल करके निकालते हैं। एक दो बार तो इतनी बड़ी लहरें आई कि बोट को लगभग डूबा ही दिया था। कुछ देर के लिए ऐसा लगा था कि बोट बच नहीं पाएगी।

लेकिन बाय चांस यह बच गए और आगे चलते रहे। बोट में अपने साथ इन्होंने कुछ खाना भी पैक किया था। लेकिन इसमें भी बड़ी दिक्कत थी। डेक के अंदर इतनी भी जगह नहीं थी कि यह सीधे बैठकर खा सके। इसलिए इन्हें खाना निगलने में दिक्कत होती। इसी कारण से इन्हें बोट पर लेट कर खाना खाना पड़ता। इस बोट पर हालात इतने मुश्किल थे, इतने मुश्किल थे कि अब शेकल्टन की हिम्मत भी जवाब देने लगी थी। उनके लिए भी अब यह सब सहन करना बहुत मुश्किल हो गया था। जब एक छोटी सी चिड़िया बोट के ऊपर मंडराने लगी तो वो गुस्से में उसे गालियां देने लगी। इतने फ्रस्ट्रेशन में अब उनकी भी हिम्मत टूटती जा रही थी। लेकिन धीरे-धीरे दिन रात नाव चलाकर यह अपनी मंजिल के बहुत करीब आ गए थे।

साउथ जॉर्जिया का आइलैंड जहाँ से शेकल्टन ने 522 दिन पहले सफ़र शुरू किया था

साउथ जॉर्जिया का आइलैंड अब सिर्फ 3 मील दूर बचा था। लेकिन इससे पहले कि यह खुशी मना पाते अचानक से एक समुद्री तूफान आ जाता है। इनकी बोट तूफान में फंस जाती है। समुद्र में लहरें एकदम से बेकाबू होने लगी। कभी बोट एक तरफ से उछलती तो कभी दूसरी तरफ आकर गिर जाती। इन सभी लोगों में अब लड़ने लायक ताकत नहीं बची थी। यह अपने चप्पू साइड में रखकर गिव अप कर देते हैं। तूफान इनकी नाव को इधर से उधर पटकते रहता है। लेकिन कुछ घंटों बाद जब हवाएं धीमी हुई, बादल थोड़े छटने लगे तो इन्होंने ऊपर देखा इनका साउथ जॉर्जिया आइलैंड। अब सिर्फ एक मील दूर बचा था। आइलैंड का यह नजारा देखकर यह अपने शरीर में बची हुई पूरी ताकत लगा देते हैं। पूरी ताकत से हर एक आदमी चप्पू चलाने लगता है। लेकिन लहरें अभी भी बड़ी तेज थी। शेकल्टन को अंदर ही अंदर लगने लगता है कि शायद अंत बहुत करीब है। यह बोट तो हिल तक नहीं रही है। लेकिन असलियत में धीरे-धीरे ही सही लेकिन यह लोग आइलैंड की तरफ आगे जरूर बढ़ रहे थे।

लगातार 3 हफ्तों तक तूफान, हवाओं और पानी से लड़ते हुए यह आखिरकार 10 मई 1916 को साउथ जॉर्जिया के आइलैंड पर कदम रख ही देते हैं। यह वही आइलैंड था जिससे यह 522 दिन पहले अंटार्कटिका के अपने सफर पर निकले थे। एक खुशी की लहर इनके अंदर दौड़ती है। शेकल्टन और क्रू मेंबर्स एक दूसरे से गले मिलते हैं। लेकिन इनकी लड़ाई यहां खत्म नहीं हुई थी। एक्चुअली में साउथ जॉर्जिया का आइलैंड दोस्तों 100 कि.मी. से ज्यादा लंबा है। जहां पर यह लैंड किए थे बोट से। आइलैंड का वो हिस्सा इंसानी बस्ती के बिल्कुल दूसरी साइड पर था।

नक्शे पर आप एग्जैक्टली देख सकते हैं कहां पर यह लैंड किए और जो इंसानी बस्ती वेलिंग स्टेशन था इस आइलैंड पर वो बिल्कुल ऑपोजिट साइड पर मौजूद है। अब इस पॉइंट से वेलिंग स्टेशन तक पहुंचने के लिए इनके पास दो रास्ते थे। पहला यह बोट में वापस बैठकर समुद्र के जरिए 130 मील ट्रैवल करते आइलैंड के ऊपर वाले हिस्से तक जाने के लिए। या फिर दूसरा यह पैदल चलकर आइलैंड पे ऊपर तक जाते। पैदल चलने का रास्ता सिर्फ 29 मील का था। लेकिन दिक्कत यह थी कि साउथ जॉर्जिया का आइलैंड इतनी खतरनाक पहाड़ियों से भरा हुआ था कि आज तक इतिहास में कोई भी इंसान इस आइलैंड को पैदल पार नहीं कर पाया था।

snow hills

इस आइलैंड को पैदल पार करना नामुमकिन माना जाता था। तो जाहिर सी बात है ये बोट का ही ऑप्शन चुनते। लेकिन यहां पर भी बड़ी दिक्कत थी इनके लिए। इनकी बोट लहरों में पिटते-पिटते इतनी टूट-फूट चुकी थी कि उसकी हालत किसी भी लायक नहीं बची थी। तो पैदल चलने के अलावा यहां पर कोई और ऑप्शन था ही नहीं। द अल्टरनेटिव वास टू अटेम क्रॉसिंग द आइलैंड। द आइलैंड ऑफ़ जॉर्ज नेवर बीन क्रॉस एनीबडी द वेगार्ड द कंट्री बी एक्सेसिव। शेकलटन अब हार मानने वालों में से नहीं थे।

इस पॉइंट पर आकर तो बिल्कुल नहीं। अगर पिछले एक साल में इतना सब सह लिया तो थोड़ा और सह लेंगे। अब जिंदा रहने के लिए उन्हें सही में ऐसा कुछ करना होगा जो इतिहास में किसी और इंसान ने नहीं किया है। इन 10,000 फीट ऊंची बर्फीली पहाड़ियों को किसी ना किसी तरीके से पैदल पार करना होगा। शेकल्टन फैसला करते हैं कि पहले शरीर में थोड़ी जान आए इसके लिए रेस्ट करना होगा। इसलिए अपने क्रू के साथ एक गुफा में रुककर अगले 9 दिन तक सिर्फ पेट भरकर खाना खाते हैं। खाने की थैंकफुली इस आइलैंड पर कोई कमी नहीं थी क्योंकि यह आइलैंड अल्बर्ट्रोसिस, सील्स और पेंग्विन से भरा हुआ था।

9 दिन के इस रेस्ट के बाद 19 मई 1916 सुबह के करीब 3:00 बजे यह किंग हाकन बे चल पड़ते हैं। अपने साथ क्रू के दो और मेंबर्स को ये ले चलते हैं। वर्सली और क्रीन वर्सली एंड क्रीन कमिंग। एंड आफ्टर कंसल्टेशन वी डिसाइडेड टू लीव द स्लीपिंग बैग्स बिहाइंड जर्नी। लेकिन सबसे पहला चैलेंज इन लोगों के सामने यह था कि किसी को पता नहीं था कि कहां से जाया जाए और कैसे जाया जाए। बर्फ इतनी ज्यादा थी कि घुटनों तक पहुंच रही थी। पहाड़ इतने ऊंचे थे कि उनके पार दिखाई नहीं दे रहा था। तो यह एक पहाड़ पर चढ़ते और उसके बाद रास्ता ढूंढने की कोशिश करते। रास्ता ना मिलने पर यह वापस लौट जाते।

ऐसा इनके साथ कई बार हुआ। जितने पहाड़ इन्हें दिख रहे थे उन सब पर एक-एक करके चढ़े। कुछ पहाड़ों के पार बड़ी खाई मिलती तो कभी दीवार जैसी ऊंची चट्टाने। जब जब आगे कोई रास्ता ना मिलता यह वापस घूम कर नीचे उतर आते दूसरे पहाड़ पर चढ़ते टू डिसपॉइंटमेंटली वीव अगले कुछ दिनों तक अपने स्पॉट से सारे पहाड़ चढ़ लिए थे। आखिरी पहाड़ चढ़ने के बाद भी कुछ अलग नहीं मिला। नीचे बहुत बड़ी खाई थी। एकदम खड़ी हुई और बहुत ही खतरनाक स्लो। सिचुएशन कट ऑफ ट्रीटनेस कवर्ड आवर एडवांस। इट वास यूज़लेस टू कंटिन्यू इन दिस फैशन। लेकिन अब पीछे मुड़कर लौटना एक ऑप्शन नहीं था। ये तीनों खुद को एक रस्सी से बांध देते हैं और धीरे-धीरे सीढ़ियां काटने लगते हैं पहाड़ में। लिटरली धीरे-धीरे सीढ़ियां बना-ब बनाकर नीचे उतरते हैं। कुछ ही देर बाद नीचे उतरते-उतरते इन्हें स्ट्रांगनेस वेलिंग स्टेशन दिखने लगा और इन्हें दिखने लगे कुछ और इंसान लोग।

36 घंटे तक लगातार पहाड़ों को चढ़ने के बाद 20 मई 1916 को शेकल्टन, वॉर्सली और क्रीन एलेरडाइस माउंटेन रेंज को पार कर लेते हैं सक्सेसफुली और स्ट्रांगनेस वेलिंग स्टेशन पर पहुंच जाते हैं। यह पहली बार था इतिहास में किसी ने साउथ जॉर्जिया आइलैंड को पैदल पार किया था। इन्होंने किस लेवल का इंपॉसिबल काम किया। आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हो कि शकल्टन के बाद यह काम पहली बार 1955 में ही दोबारा किया गया और वो भी एक्सपर्ट क्लाइमर्स अपनी पूरी तैयारी के साथ आए थे। उन्होंने किया। शेकल्टन के पास तो यहां ना कोई टेंट था, ना कोई स्लीपिंग बैग। इनके पास थी तो बस अपनी हिम्मत, हौसला और जिद। शेकल्टन जब अपने दो साथियों के साथ फाइनली इस वेलिंग स्टेशन पर पहुंचे तो इन्हें पहचानना मुश्किल था कि ये एक्चुअली में इंसान भी है या नहीं। इनकी दाढ़ी बहुत बड़ी हो चुकी थी। इनके चेहरे पूरे काले पड़ चुके थे। सिर्फ आंखें दिखाई दे रही थी। कपड़े पूरी तरीके से फटे हुए थे। स्टेशन पर मौजूद फैक्ट्री मैनेजर ने जब पहचाना और देखा कि यह तो वही शेकल्टन है। 

2 साल पहले अंटार्कटिका में अपनी टीम के साथ लापता शेकल्टन, जिंदा खड़ा था

वही बंदा जो 2 साल पहले अंटार्कटिका में अपनी टीम के साथ लापता हो गया था। साउथ जॉर्जिया के स्टेशन पर मौजूद हर एक इंसान शेकल्टन और उनके क्रू की कहानी जानता था। सब इसे एक दर्दनाक घटना की तरह जानते थे। वो आदमी जो अपने जहाज के साथ मारा गया। लेकिन इन्हें यकीन नहीं हुआ कि यही सेम आदमी 2 साल बाद इनकी आंखों के सामने जिंदा खड़ा था। फैक्ट्री मैनेजर तुरंत इन्हें खाना और कुछ नए कपड़े देते हैं। रात में सोने के लिए बिस्तर। यह तीनों लोग नहाते हैं और शेव करते हैं और अगले ही दिन वॉर्सली नाव लेकर किंग हैकन में पहुंचता है और अपने बाकी तीन साथियों को भी रेस्क्यू कर लेता है। वही तीन लोग जो अभी भी आइलैंड की दूसरी तरफ इंतजार कर रहे थे शेकल्टन का। लेकिन शेकल्टन की असली चिंता थी एलीफेंट आइलैंड पर फंसे हुए इनके 22 क्रू मेंबर्स। उन्हें आखिरी बार देखे हुए एक महीने से ज्यादा का समय बीत चुका था। क्या वो लोग अभी भी जिंदा थे?

क्या ऐसी सिचुएशन में आप खुद को मोटिवेटेड रख पाएंगे जिंदा रहने के लिए? स्पेशली जब आपको यह भी नहीं पता कि आपके कैप्टन सक्सेसफुली ड्रैक्स पैसेज को क्रॉस कर भी पाए हैं या नहीं। दूसरी तरफ से यहां आपको बचाने कभी कोई आएगा भी या नहीं। 

शेकल्टन ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश करी एलीफेंट आइलैंड पर उन लोगों को जल्दी से जल्दी रेस्क्यू करने की। लेकिन जैसे ही वह जहाज लेकर वहां पर पहुंचे, एक बार फिर से यह रेस्क्यू शिप भी बर्फ में फंस गया। दोबारा ट्राई किया नहीं बात बनी। तीसरी बार भी यही हुआ। 3 महीने में तीन बार कोशिश की एलीिफेंट आइलैंड तक जाने की, उन लोगों को बचाने की। लेकिन तीनों बार अपने जहाज को वापस मोड़ना पड़ा। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, शेकल्टन की चिंता बढ़ने लगी थी। ब्रिटिश सरकार से वह स्पेशली रिक्वेस्ट करते हैं कि एक आइस ब्रेकिंग जहाज दिया जाए।

उन्हें डिस्कवरी नाम का एक जहाज दिया भी जाता है, लेकिन इसे आने में हफ्तों का समय और लगना था। शेकल्टन का इंतजार करने का मूड नहीं था। वो नहीं जानते थे कि यह लोग कब तक हिम्मत रख पाएंगे। चिली की सरकार से एक और जहाज की रिक्वेस्ट request की जाती है। एक येचो नाम का जहाज उन्हें दिया जाता है। 25 अगस्त 1916। यह इस जहाज को लेकर एलीफेंट आइलैंड की ओर दोबारा निकलते हैं। करीब 6 दिन का इन्हें समय लगता है। लेकिन इस बार यह सक्सेसफुली 30 अगस्त को एलीफेंट आइलैंड पहुंच जाते हैं। इस आइलैंड पर पहुंचते ही जो चीज इन्हें दिखाई दी उसे देखकर यह पूरी तरीके से दंग रह जाते हैं।

असल में जो 22 लोग एलीिफेंट आइलैंड पर ही फंसे रहे थे। दोस्तों, शेकल्टन जानते थे कि इनको लीडरशिप की जरूरत पड़ेगी। नहीं तो यह अपने आप में ही डिप्रेस्ड हो जाएंगे, फ्रस्ट्रेट होने लगेंगे। इसलिए शेकल्टन ने इनमें से फ्रैंक वाइल्ड नाम के बंदे को लीडर बना दिया था। शेकल्टन के जाने के बाद इन सभी लोगों ने फ्रैंक वाइल्ड के ऑर्डर्स पर दो बोट्स को उल्टा करके एक शेल्टर बनाया। पूरे 128 दिन तक इन्होंने यहीं घर बनाए रखा। पेंग्विंस और सील्स को हंट करके यह अपना पेट भरते रहे। ठंड, भूख और निराशा के बीच फ्रैंक वाइल्ड हर सुबह एक ही चीज दोहराते। सामान बांध लो दोस्तों।

बॉस आज आ सकते हैं। बॉस यानी शेकल्टन बॉस नहीं आए। ये दिन हफ्तों में बदल गए और हफ्ते महीनों में बदल गए। लेकिन हर सुबह फ्रैंक उठकर यही दोहराते हैं। सामान बांध लो दोस्तों बॉस आज आ सकते हैं। हर सुबह फ्रैंक पहाड़ी पर चढ़ते और देखते हैं कि कोई जहाज आया कि नहीं और हर शाम खाली हाथ लौट जाते। चार महीनों बाद लोगों की हिम्मत जवाब देने लगी थी और इनकी मुश्किलें बढ़ती भी जा रही थी। इनमें से एक आदमी ब्लैक बरो का पैर बुरी तरीके से इनफेक्ट हो जाता है। गैंगन का इनफेक्शन देखने को मिलता है। इन्हें यह पैर काटना पड़ता है। हर एक दिन जो बीतता इन्हें यकीन होने लगता कि शेकल्टन एक्चुअली में साउथ जॉर्जिया नहीं पहुंच पाए। रास्ते में ही शायद उनकी बोट डूब गई होगी। 

शेकल्टन को गए हुए अब 4 महीने 6 दिन हो चुके थे। फ्रैंक वाइल्ड ने भी अब फैसला लिया कि आगे बढ़ना होगा। फ्रैंक के कहने पर यह लोग सही में इस बार सामान बांध लेते हैं। लेकिन किसी के इंतजार में नहीं। इस बार खुद अपनी नाव निकालकर कहीं और जाने की कोशिश में। यह लोग डिसेप्शन आइलैंड की ओर रवाना होने की तैयारी शुरू कर देते हैं। लेकिन इससे पहले कि यह लोग एलीफेंट आइलैंड को छोड़ते इन्हें दूर समुद्र में एक नजारा दिखाई देता है। एक बड़ा सा जहाज इनकी तरफ आ रहा है। यह जहाज था येचो। इस जहाज के नजदीक आते ही इन्हें दिखाई देते हैं अपने कमांडर और बॉस शेकल्टन। ही शप्ले बॉस अब इन्हें फाइनली बचाने आ गए थे।

खतरनाक सफ़र आख़िर पूरा होता है

शेकल्टन इन्हें देखकर दंग रह जाते हैं। सभी 22 लोग जिंदा थे। इन सभी लोगों ने हिम्मत नहीं हारी थी। लगभग दो सालों तक बर्फ, समुद्र और पहाड़ों से लड़ने के बाद शकल्टन और उनका क्रू वापस अपने घर लौटते हैं। व्हेन वी लैंड देम असली देली पुट द सी अगेन। यह सही में एक मिरेकल था। शेकल्टन 27 लोगों के साथ आए थे और सभी 27 लोगों के साथ वापस घर लौट रहे थे। यह संभव हुआ शेकल्टन की लीडरशिप और हिम्मत क्रू की डिटरमिनेशन और अटूट टीमवर्क की वजह से। इस घटना से 106 साल बाद 2022 में कुछ इन्वेस्टिगेटर्स खोज कर रहे थे समुद्र के अंदर कि तभी इन्हें वेडल सी में 10,000 फीट नीचे। इन्हें दिखाई पड़ता है शेकल्टन का जहाज एंडरेंस। द स्टेट ऑफ़ प्रिजर्वेशन इज जस्ट अब्सोलुटली ब्रिलियंट। देयर आर नो व्री पैरासाइट्स इन द वेल सी। सही में ये बड़ी कमाल की बात है।

at home

106 साल लगे इस जहाज की रैकेज rescue में हमें और 106 साल बाद भी क्योंकि अंटार्कटिका के नीचे डूबा था। इसकी कंडीशन अभी भी काफी अच्छी है। और आज के दिन अगर आप कभी साउथ जॉर्जिया आइलैंड जाएंगे तो वहां पर शेकल्टन की कब्र भी मिलेगी। यह इतिहास में अपना नाम बनाने चले थे। अंटार्कटिका को पैदल पार करने वाले पहले इंसान। हालांकि अपने ओरिजिनल प्लान में यह फेल रहे लेकिन इन्होंने कुछ ऐसा कर दिखाया जो और भी ज्यादा चमत्कारी था और भी ज्यादा कमाल का था। आपके अंदर हिम्मत हो और जिद हो तो आप सही में इंपॉसिबल को पॉसिबल बना सकते हैं।

Extraordinary True Story of Ernest Shackleton with Crew Members and the Endurance Ship.

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