बज्रेश्वरी देवी मंदिर (Brajeshwari Devi Temple Kangra), जिसे बृजेश्वरी देवी मंदिर या नगरकोट वाली माता के नाम से भी जाना जाता है, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित एक अत्यधिक पूजनीय हिंदू तीर्थ स्थल है। यह देवी दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक है। दुर्गा चालीसा की पंक्तियाँ “नगरकोट में तुम्ही विराजत, टीहु लोक में डंका बाजत” इसी मंदिर के महत्व को दर्शाती हैं। यह मंदिर कांगड़ा शहर में स्थित है और धर्मशाला के करीब है, जो इसे हिमाचल के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक बनाता है। मंदिर समुद्र तल से लगभग 738.33 मीटर (2,422 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है और कांगड़ा किले के निकट है।
मुख्य देवता और पिंड स्वरूप
यह मंदिर देवी सती का पवित्र निवास स्थान है। यहाँ देवी तीन पिंडी स्वरूपों में विद्यमान हैं – बज्रेश्वरी देवी, भद्रकाली और एकादशी देवी। भगवान शिव लाल भैरव के रूप में यहाँ विराजमान हैं। मुख्य देवता के रूप में देवी दुर्गा और काली की पूजा की जाती है।
इतिहास और पौराणिक कथाएँ
- शक्तिपीठ का उद्भव: पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था और भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य कर रहे थे, तो भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था। देवी सती का बायाँ स्तन इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह एक शक्तिपीठ बन गया।
- पांडवों द्वारा निर्माण: माना जाता है कि मंदिर का मूल ढाँचा महाभारत काल में पांडवों द्वारा बनवाया गया था। किंवदंती के अनुसार, पांडवों ने नगरकोट के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और अपना साम्राज्य वापस पाने के लिए इस मंदिर का निर्माण किया था। पांडवों ने एक स्वप्न में देवी दुर्गा को देखा था, जिन्होंने उन्हें विनाश से बचाने के लिए नगरकोट गाँव में उनके लिए एक मंदिर बनाने का निर्देश दिया था। पांडवों ने उसी रात एक भव्य मंदिर का निर्माण किया था।
- विदेशी आक्रमण और क्षति: पांडवों ने इस मंदिर को बहुमूल्य पत्थरों, सोने और चांदी का उपयोग करके बहुत खूबसूरती से बनवाया था। हालांकि, बाद में विदेशी आक्रमणकारियों ने मंदिर की सुंदरता को नष्ट कर दिया और उसे बिगाड़ दिया था।
- 1905 का भूकंप और पुनर्निर्माण: सन् 1905 में एक शक्तिशाली भूकंप से यह मंदिर पूरी तरह से नष्ट हो गया था। बाद में, सरकार द्वारा इसका पुनर्निर्माण कराया गया। कुछ जीर्णोद्धार कार्यों के बाद भी, वर्तमान मंदिर बहुत सुंदर और प्राचीन दिखता है।
- ध्यानु भक्त की कथा: मुख्य मंदिर के सामने ध्यानु भक्त की एक मूर्ति है, जिन्होंने अकबर के समय में देवी को अपना सिर अर्पित किया था।
- पसीना आने वाली मूर्तियों की मान्यता: स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, किसी बड़ी समस्या के कारण मंदिर के अंदर की मूर्तियों से पसीना आने लगता है, जो लोगों को आगाह करता है। मंदिर के पुजारी देवों का आशीर्वाद प्राप्त करने और शहर को समस्याओं से बचाने के लिए हवन का आयोजन करते हैं।
- मकर संक्रांति पर विशेष परंपरा और महिषासुर कथा: मकर संक्रांति के अवसर पर यहाँ विशेष उत्सव आयोजित किए जाते हैं। इस दिन, कई किलोग्राम देसी घी को एक कुएँ के ठंडे पानी में 101 बार धोकर मक्खन बनाया जाता है। उसके बाद, इसे माता की पिंडी पर लगाया जाता है और एक सप्ताह के बाद प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। यह विशेष उत्सव एक कहानी से जुड़ा है: माना जाता है कि देवी दुर्गा ने राक्षस महिषासुर से युद्ध के बाद अपने घावों को भरने के लिए यहाँ मक्खन लगाया था। इसी कारण से यह परंपरा मंदिर परिसर में निभाई जाती है।
मंदिर की वास्तुकला
मंदिर एक पत्थर की दीवार से घिरा हुआ है और एक बड़े परिसर के मध्य में स्थित है। प्रवेश द्वार पर एक नग़ारखाना या ढोल घर है। प्रवेश द्वार बासीन किले के प्रवेश द्वार के समान बनाया गया है। मंदिर भी एक किले जैसी पत्थर की दीवार से घिरा हुआ है। मुख्य द्वार के सामने ध्यानु भक्त की मूर्ति और दोनों तरफ दो शेर हैं। भगवान गणेश और भगवान विष्णु की मूर्तियाँ भी यहाँ मौजूद हैं। वर्तमान मंदिर संरचना में तीन मकबरे भी हैं, जो इसे अद्वितीय बनाते हैं। मंदिर की वास्तुकला में हिंदू और मुगल शैलियों के तत्व मिलते हैं।
दर्शन, आरती और भोग के समय
- दर्शन का समय: सुबह 5:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक (सुबह), दोपहर 12:30 बजे से रात 8:00 बजे तक (शाम)।
- आरती: मंदिर में दिन में 5 बार आरती की जाती है:
- देवी को जगाने के लिए भोर की आरती।
- पंचामृत से स्नान के बाद मंगला आरती (गर्मियों में सुबह 5 बजे, सर्दियों में सुबह 5:45 बजे)।
- दोपहर के आराम के लिए द्वार बंद करने से पहले आरती।
- शाम की आरती (गर्मियों में शाम 7:00 बजे, सर्दियों में शाम 6:30 बजे)।
- रात में शयन आरती।
- मंदिर बंद होने का समय: मंदिर का द्वार दोपहर में केवल आधे घंटे के लिए बंद रहता है।
- भोग: देवी को मुख्य भोग में पूड़ी, हलवा और चना चढ़ाया जाता है। शाम का भोग भक्तों में वितरित किया जाता है।
- विशेष प्रसाद: भारत में लोग एकादशी (हर पखवाड़े का 11वां दिन) पर चावल नहीं खाते हैं, लेकिन एकादशी माता की उपस्थिति के कारण, उस दिन चावल एक विशेष प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।
- लंगर: मंदिर समिति द्वारा भक्तों के लिए दिन में दो बार लंगर की व्यवस्था की जाती है: दोपहर 12:30 बजे से 2:30 बजे तक और शाम 7:30 बजे से रात 9 बजे तक। नवरात्रि के मेलों के दौरान, लंगर की सुविधा दोपहर से रात तक जारी रहती है।
त्यौहार और मेले
बज्रेश्वरी माता मंदिर में वर्ष भर कई मेले और त्यौहार मनाए जाते हैं, जो भक्तों और पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है।
- नवरात्रि: यह नौ दिवसीय उत्सव देवी दुर्गा के नौ रूपों का सम्मान करता है। इस दौरान मंदिर को रोशनी, फूलों और अन्य रंगीन सजावट से सजाया जाता है। भक्त प्रार्थना करते हैं और देवी का आशीर्वाद लेने के लिए विशेष पूजा और यज्ञ करते हैं। चैत्र और अश्विन की नवरात्रि के दौरान भारी संख्या में भक्त आते हैं।
- दीपावली: प्रकाश का यह त्योहार भी मंदिर में बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। मंदिर को दीयों, रंगोली और रोशनी से सजाया जाता है, और भक्त प्रार्थना करते हैं। मंदिर एक भव्य आतिशबाजी का प्रदर्शन भी आयोजित करता है।
- वार्षिक मेला: चैत्र (मार्च-अप्रैल) के महीने में एक वार्षिक मेला आयोजित किया जाता है। इस दौरान देश के विभिन्न हिस्सों से भक्त देवी का आशीर्वाद लेने और मंदिर अधिकारियों द्वारा आयोजित विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने आते हैं।
- शिवरात्रि: शिवरात्रि का त्यौहार भी यहाँ मनाया जाता है।
- मकर संक्रांति: जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, मकर संक्रांति पर विशेष उत्सव और मक्खन की रस्म आयोजित की जाती है।
पहुँचने के साधन
यह शक्तिपीठ सड़क, ट्रेन या उड़ान के माध्यम से आसानी से पहुँचा जा सकता है, जिसमें कांगड़ा से कनेक्टिविटी है।
- हवाई मार्ग द्वारा: निकटतम हवाई अड्डा गग्गल हवाई अड्डा (धर्मशाला) है, जो मंदिर से केवल 11-12 किलोमीटर दूर है। दिल्ली, चंडीगढ़ और अन्य प्रमुख शहरों से नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं। हवाई अड्डे से स्थानीय टैक्सी या ऑटो-रिक्शा लिया जा सकता है (समय: 20-30 मिनट)। मंदिर हवाई अड्डे के टावर से दिखाई देता है।
- रेल मार्ग द्वारा: बज्रेश्वरी मंदिर के लिए निकटतम प्रमुख रेलवे स्टेशन पठानकोट है। यहाँ से टैक्सी या स्थानीय बस द्वारा लगभग 85 किलोमीटर की दूरी तय करने में 2-3 घंटे लगते हैं। कांगड़ा मंदिर रेलवे स्टेशन भी निकटतम है, जो मंदिर से लगभग 3-4 किलोमीटर दूर है। यदि आपके शहर से जुड़ा हो तो आप एएमबी अंडोरा रेलवे स्टेशन तक भी ट्रेन ले सकते हैं, जो मंदिर से लगभग 73 किलोमीटर दूर है। दिल्ली, जम्मू और अन्य शहरों से ट्रेनें उपलब्ध हैं।
- सड़क मार्ग द्वारा: हिमाचल में मंदिर यात्रा के लिए सड़क सबसे आरामदायक और सुविधाजनक विकल्प है। बज्रेश्वरी माता मंदिर से प्रमुख शहरों की दूरी इस प्रकार है:
- दिल्ली से: 465 किमी, 9-10 घंटे (HRTC बसें या निजी वाहन)।
- चंडीगढ़ से: 230 किमी, 5-6 घंटे।
- अमृतसर से: 200 किमी, 4-5 घंटे।
- कालका से: 215 किमी, 5-6 घंटे।
- ऊना से: 100 किमी, 2-3 घंटे।
- धर्मशाला से: 18-20 किमी।
- मैक्लोडगंज से: 21-34 किमी। लोकल बसें (HRTC) कांगड़ा बस स्टैंड से उपलब्ध हैं, जो मंदिर तक पहुँचाती हैं। टैक्सी किराया लगभग 500-1000 रुपये हो सकता है।
निकटवर्ती पर्यटन स्थल
यदि आप कांगड़ा देवी दर्शन की धार्मिक यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो आस-पास के कुछ प्रसिद्ध स्थानों पर जाना न भूलें:
- कांगड़ा किला: मंदिर से सिर्फ 3 किमी दूर स्थित, यह भारत के सबसे पुराने किलों में से एक है और आसपास की पहाड़ियों का शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है।
- मसरूर रॉक कट मंदिर: यह प्राचीन मंदिर बज्रेश्वरी माता मंदिर से लगभग 12 किमी दूर स्थित है और 8वीं शताब्दी के 15 रॉक-कट मंदिरों का एक समूह है, जो एक ही चट्टान से तराशे गए हैं और भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा को समर्पित हैं।
- करेरी झील: यह सुरम्य झील बज्रेश्वरी माता मंदिर से लगभग 22 किमी दूर स्थित है और घने जंगलों और बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरी हुई है।
- महाराणा प्रताप सागर झील (पोंग बांध झील): यह जलाशय बज्रेश्वरी माता मंदिर से लगभग 30 किमी दूर स्थित है और पक्षी देखने और नौका विहार के लिए एक लोकप्रिय स्थान है।
- मैक्लोडगंज: बज्रेश्वरी माता मंदिर से लगभग 21 किमी दूर स्थित, मैक्लोडगंज एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल और दलाई लामा का निवास स्थान है।
- अन्य स्थान: गुप्त गंगा, जयंती माता, सूरज कुंड, वीरभद्र मंदिर, पालमपुर।
- पांच देवी दर्शन: बज्रेश्वरी मंदिर के सबसे पास ज्वालामुखी देवी और चिंतपूर्णी मंदिर हैं, जिन्हें आपकी यात्रा में जोड़ा जा सकता है।
सबसे अच्छा मौसम यात्रा के लिए
मंदिर घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के महीने हैं, जब मौसम सुहावना होता है (तापमान 10°C से 25°C)। नवरात्रि (जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में पड़ती है) के दौरान भी दौरा करना एक लोकप्रिय विकल्प है। जुलाई से सितंबर तक मानसून के मौसम से बचना चाहिए, क्योंकि सड़कें फिसलन भरी हो सकती हैं। अप्रैल से जून तक गर्मियों के महीनों में हल्के सूती कपड़े पहनने और हाइड्रेटेड रहने की सलाह दी जाती है। मकर संक्रांति (14 जनवरी) पर विशेष उत्सव के लिए भी जाना आदर्श है।
यात्रा की तैयारी और टिप्स
- कपड़े और सामान: मामूली कपड़े पहनें (मंदिर में सिर ढकें, जूते उतारें)। ठंडे मौसम में जैकेट, गर्मियों में हल्के कपड़े। पानी की बोतल, स्नैक्स और मोशन सिकनेस की दवाएँ रखें। चमड़े की वस्तुएँ न लाएँ।
- स्वास्थ्य और सुरक्षा: पहाड़ी रास्तों पर सावधानी बरतें। ऊँचाई पर सिरदर्द हो सकता है, इसलिए हाइड्रेटेड रहें। कोविड नियमों का पालन करें।
- आवास: मंदिर के पास अच्छे होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं। लक्जरी प्रवास के लिए, आप पालमपुर या धर्मशाला में आवास बुक कर सकते हैं, जो 20 किमी दूर हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे MakeMyTrip से बुकिंग करें।
- भोजन: मंदिर के पास कम बजट के ढाबे या स्ट्रीट फूड मिल सकते हैं। लोकल व्यंजन जैसे सिड्डू और धाम ट्राई करें, लेकिन पेट की दवा रखें।
- फोटोग्राफी: मंदिर के गर्भगृह के अंदर पिंडियों की तस्वीरें लेने की अनुमति नहीं है। बाहरी क्षेत्र में फोटो ले सकते हैं।
- बजट: दैनिक खर्च 1500-4000 रुपये (यात्रा, भोजन, रहना)। त्योहारों में पहले बुकिंग करें।
- अन्य टिप्स: सुबह जल्दी दर्शन करें ताकि भीड़ से बचें। पर्यावरण का ध्यान रखें, प्लास्टिक न फेंकें।
यह जानकारी आपकी यात्रा को आसान और आध्यात्मिक बनाएगी। यदि और विवरण चाहिए, तो पूछें!